कल्याण की कामना कौन नहीं रखता, प्रत्येक व्यक्ति रखता है और व्यक्ति अपने और अपने परिवार के कल्याण हेतु सर्वदा हर सम्भव प्रयास करता रहता है ! किन्तु विरले मनुष्य यह जानते हैं कि हम सबके कल्याण में एक दूसरे का कल्याण छुपा है। हम सब मोतियों की माला हैं अगर एक भी मोती टूटा तो पूरी माला की रौनक बिगड़ जाती है।

छोटे छोटे मूंगों की माला में यदि एक सेर भर का मोती लगा दिया तो क्या होगा? वो माला तब तक ही सुरक्षित रहेगी जब तक उस भारी मोती को पकड़कर उसे उठाया जाएगा, जैसे ही किसी अन्य मूंगे की ओर से पकड़कर यदि माला उठाई तो भारी मोती के भार से माला टूट जायेगी | इस बात को कहने का अर्थ मात्र इतना सा ही है कि समाज में अगर कोई एक अत्यंत ही शक्तिशाली व्यक्ति या परिवार आ जाये तो समाज तब तक ही सुरक्षित है जब तक वह शक्ति समाज का भार उठाये यदि वह शक्ति है यह मान बैठे की समाज उसका भार उठाएगा तब तो समाज का बिघटन सुनिश्चित है !

आदि काल से लेकर और आज से लगभग २०० वर्ष पहले तक भी मनुष्य के क्रियाकलाप की सीमा उसकी सीमा तक ही थी ! जैसे आवागमन के लिए घोड़े का प्रयोग किया जाता था जिसकी गति मनुष्य की गति से बहुत अधिक नहीं होती! कहने का अभिप्राय यह है कि कार, रेलगाड़ी इत्यादि मनुष्य की सीमाओं से परे हैं !