बात बहुत सीधी है किसान जो अन्न उगाते हैं वो चाह रहे हैं कि कुछ ऐसा हो कि उनको अपनी उपज का अधिक से अधिक दाम मिले | और MSP की मांग करके वो ऐसा चाहते हैं कि सरकार ही एक निश्चित दाम पर उनका माल खरीदे | अब सरकार इतने अन्न को खरीदकर करेगी क्या?

अब इतने गेहूं और धान की आवश्यकता नहीं है

अभी सिर्फ ६ प्रतिशत किसानों का अनाज ही MSP पर खरीदा जा रहा है और यह 6 प्रतिशत ही इतना अधिक हो जाता है कि इसको रखने का प्रबंध FCI के पास है ही नहीं | अन्नदाता के कड़ी मेहनत से उगाये अन्न का एक बड़ा हिस्सा खुले में सड़ता है, जानवर खाते हैं और अंत में FCI को आवश्यकता से अधिक अनाज आने पौने दामों में बाज़ार में बेचना पड़ता है | अब आप कहेंगे कि FCI को प्रबंध करना चाहिए अधिक भण्डारण का | लेकिन क्यों करें प्रबंध जब आवश्यकता ही नहीं है | 41. 2 मिलियन टन खाद्यान की भारत को रखने की आवश्यकता है पर FCI के पास 99 मिलियन टन खाद्यान पड़ा है | यह जून 2020 के आँकड़े हैं | इस आवश्यकता से अधिक अनाज के रखरखाब की वजह से FCI २ लाख करोड़ के घाटे में है जबकि इसकी कुल संपत्ति मात्र 5000 करोड़ है |

एक समय था जब भारत में खाद्यान की कमी थी आज नहीं है | और MSP एक बहुत बढ़ी वजह बना हमें उस विकट स्थिति से बाहर निकालने में | पंजाब में APMC मंडियां बनीं जहाँ MSP पर गेहूं और धान खरीदा गया जिससे FCI के गोदाम भरे | पंजाब के किसान जो कभी हीरो बने भारत की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करके आज वो जीरो बन चुके हैं धान और गेहूं को हर साल बार बार ऊगा कर |

पंजाब के सन्दर्भ में बात

पैरामीटर पंजाब अन्य भारत
खेतों पर सिंचाई की व्यवस्था 99 प्रतिशत महाराष्ट्र में मात्र 20 प्रतिशत 50 प्रतिशत
औसतन हर व्यक्ति के पास ज़मीन 3.62 हेक्टेयर बिहार .04 हेक्टेयर 1.08 हेक्टेयर
खाद का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर 212 किग्रा - प्रति हेक्टेयर 135 किग्रा
किसानों की संख्या 1.09 मिलियन - 146.45 मिलियन
प्रति परिवार सब्सिडी 1.22 लाख सालाना - -
खेत की कीमत 50-100 लाख /acre 20-25 लाख /acre UP -

पंजाब में ज़मीन इतनी महंगी है कि कंपनी सेटअप करना वहां काफी महंगा है | जबकि वहां कई सारी फ़ूड प्रोसेसिंग कंपनियों की आज आवश्यकता है |

हक़ीक़त यह है कि कृषि जीडीपी प्रति हेक्टेयर का अगर हिसाब लगाएं तो पंजाब पहले १० राज्यों में भी नहीं है|

alt text

क्यों MSP क़ानूनी अधिकार नहीं हो सकता

साफ़ ज़ाहिर है कि ना तो सरकार को आवश्यकता है कि वो सारा अनाज खरीदे, न उसके पास उतने फण्ड हैं और न ही इतना अनाज रखने की जगह | तो जितना सरकार को आवश्यकता है राशन बांटने के लिए, सेना के खाने के लिए और खाद्यान्न सुरक्षा के लिए उतना सरकार खरीदे और बाकी प्राइवेट कॉर्पोरेट खरीदें |

अब आप कॉर्पोरेट को बाध्य नहीं कर सकते कि वो MSP पर खरीदे | इसमें कई झोल हैं | भाव गुणवत्ता के हिसाब से तय होता है अगर कोई घुन लगे गेहूं के भी MSP के दाम मांगेगा तो कौन देगा | ना देने पर जेल होगी तो कोई खरीदेगा ही नहीं | तो बताओ फिर किसान कहाँ बेचेगा उस गेहूं को? आप कहेंगे कि कानून ऐसा हो जिससे गुणवत्ता अनाज की ख़राब है तो ग्राहक MSP से कम में खरीद सकता है | तो फिर डर यह रहेगा की कॉर्पोरेट ग्राहक अच्छे माल की गुणवत्ता भी ख़राब बता कर उसे कम दाम में खरीदना चाहेगा | कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में गुणवत्ता के नियम पर इन्हीं वजहों से प्रश्न उठ रहे हैं कि प्राइवेट पार्टी गुणवत्ता ख़राब बताकर माल खरीदने से मना कर सकती है | तो फिर गुणवत्ता का प्रश्न MSP पर भी उठता है |

भारत के कई राज्य ऐसे हैं जहाँ कृषि का खर्चा कम है क्योंकि वहां के किसानों को फ्री बिजली व् खाद मिलता है अब उनको उतनी MSP क्यों मिले जितना अन्य राज्यों के किसानों को मिले|

समय बदलाव का है पर राह आसान नहीं है

जब भी कभी किसी चीज़ की गारंटी मिलती है उस दिशा में उत्पादन खपत से ज्यादा होने लगता है | आईटी जॉब्स को ही देख लो | जब हर किसी को जॉब मिलने लगी तो हर कोई btech करने लगा | नतीजा क्या हुआ जितने इंजीनियर की आवश्यकता थी उस से कहीं ज्यादा निकलने लगे | वही अब MSP के साथ हो रहा है| किसान नेता आवश्यक वस्तु अधिनियम के बदलाव को ख़राब बताते हुए कहते हैं कि इस से प्राइवेट प्लेयर बाजार से माल गायब कर उसकी कमी पैदा करेंगे और दाम बढ़ाएंगे | वैसे ही किसान MSP के लालच में किसान आँख बंद करके गेहूँ और धान किये जा रहा है जबकि इतने गेहूं धान की अब आवश्यकता ही नहीं है| और उस से गेहूं का बाज़ार भाव MSP की तुलना में कम रहता है| फ्री बिजली से पंजाब के किसान धरती को पानी से खाली किये दे रहे हैं | पराली (Stubble) जलाने के कुप्रभाव अलग हैं |

किसानों को अब गेहूं और धान के अलावा अब अन्य विकल्पों के बारे में सोचना होगा जैसे दलहन, तिलहन, सब्ज़ी, फल, फूल, मत्स्य, मांस इत्यादि | इससे अलग अलग तरह की फसलों की बाजार में आमद होगी किसी की भी अधिकता नहीं होगी और कीमतें अच्छी बनी रहेंगी|

कुछ भी कहो MSP है तो सपोर्ट सिस्टम ही | हमने इस आन्दोलन में देखा कि पंजाब व हरयाणा के किसान कितने संपन्न हैं | क्या उन्हें अब किसी सपोर्ट की आवश्यकता है? असल में देखें तो MSP आज उप्र व् बिहार के किसानों की आवश्यकता है|

जितना हो सके किसानों को रोजगार के रास्ते खेती से बाहर देखने होंगे | इससे प्रति व्यक्ति खेत का आकार बढ़ेगा | जिससे किसान उस बढे हिस्से पर सिंचाई की समुचित व्यवस्था कर पायेगा और जरुरी मशीनरी का प्रबंध भी कर पायेगा|

एक्सपर्ट्स की राय मानें तो MSP सिस्टम को रखें लेकिन उसको वैश्विक बाजार के भाव से जोड़कर रखें |